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यद्यपि पेट के बल लेट कर जो आसन किये जाते हैं वे सरल ही हैं तो भी उदर संबंधी अल्सर एवं हर्निया जैसे रोगों से त्रस्त लोग आवश्यक सूचनाओं का अवश्य पालन करें |
1. शिथिलासन

इस आसन में शरीर शिथिल रहता है। इसलिए यह आसन शिथिलासन कहलाता है।
विधि –
रखा हुआ सिर दायीं ओर घुमावें। उस ओर दायाँ घुटना मोड़ कर रखें। दूसरा पैर पसार कर उसे ढ़ीला करें। सारा शरीर भी होला करें। अांखें बंद रखें। सांस धीरेधीरे लेते और छोड़ते रहें। सभी अवयवों पर मन को केन्द्रित करें।
थोड़ी देर बाद सिर दूसरी ओर घुमा कर घुटना बदलें। ऊपर की तरह- थोड़ी देर रहें |
पेट के बल लेट कर किये जानेवाले हर आसन के बाद आराम के लिए शिथिलासन अवश्य करते रहें।
लाभ –
इस आसन से शरीर के सभी अवयवों को आराम मिलता है| थकावट दूर होती है| अच्छी नींद आती है। टेन्शन कम होता है। रक्त चाप संबंधी अन्य बीमारियाँ दूर होती है।
2. नाभि अासन

इस आसन में सारा शरीर नाभि पर उठा रहता है | इसलिए यह नाभि आसन कहलाता है।
पेट के बल लेट कर नमस्कार की मुद्रा में दोनों हाथ सिर के आगे की ओर पसारें। दोनों पैरों की एड़ियाँ मिलावें। सांस लेते हुए दोनों हाथ दोनों पैर, सिर तथा छाती शक्ति के अनुसार ऊपर उठावें। पेट और नाभि पर सारा शरीर उठा रहे |
2 से 5 सेकंड के बाद सांस छोड़ते हुए पूर्व स्थिति में आ जावें। आरंभ में 3 से 5 बार यह क्रिया करें। नाभि पर ध्यान रखें |
दोनों हाथ और दोनों पैर न उठा सकें तो एक-एक हाथ और एक-एक पैर हो उठावें |
लाभ –
नाभि एवं पेट के अवयव बलिष्ठ होते हैं। नाभि अपनी जगह से हटे तों तकलीफ होगी। इस आसन से नाभि अपनी जगह ही स्थिर रहेगी। हाथ, पैर और छाती को बल मिलेगा |
निषेध –
हर्निया, अल्सर के रोगी, गर्भिणी स्त्रियाँ और कुछ दिन पहले आपरेशन करानेवाले यह आसन न करें।
3. भुजंगासन
यह आसन फन फैलानेवाले सांप के आकार में रहता है। अत: यह भुजंगासन कहलाता है|
आम तौर पर हम सिर झुकाते रहते हैं। इससे गर्दन संबंधी दर्द तथा स्पांडलाइटिस आदि व्याधियाँ आती हैं। परन्तु भुजंगासन में सिर को पीछे की ओर झुका कर रखते हैं। इससे उपर्युक्त व्याधियाँ दूर होती हैं।
विधि –
1. पेट के बल लेटें। शरीर को सीधे पसारें। दोनों पाँव ज़मीन छूते रहें। दोनों पैरों के अंगूठे व एड़ियाँ मिली रहें। दोनों हथेलियाँ छाती की दोनों ओर जमीन पर रखें। साँस लेते हुए कुहनियों के सहारे सिर और छाती को ऊपर उठावें । थोड़ी देर के बाद सांस छोड़ते हुए पूर्वस्थिति में आवें| गर्दन पर ध्यान हो |

2. साँस लेते हुए छाती सहित हाथ भी ऊपर उठावें। साँस छोड़ते हुए हाथ और सिर नीचे उतारें। छाती में ध्यान रखें |

3. दोनो हथेलियाँ छाती के पास ज़मीन पर टिकावें। साँस लेते हुए सिर, छाती तथा नाभि सहित पेट को उठाते हुए आसमान की ओर देखें| सांस छोड़ते हुए यथास्थिति में आवें। कंधों पर ध्यान दें।

4 दोनों हथेलियाँ और दोनों हाथों की उँगलियाँ उलझा कर गर्दन पर रखें। साँस लेते हुए छाती, सिर और कुहनियाँ ऊपर उटावें। साँस छोड़ते हुए उन्हें नीचे उतारें | गर्दन पर ध्यान रखें।

5. (अ) दोनों हाथ, बगल में सीधे लंबा पसारें। दायाँ हाथ ऊपर उठावें। सिर दायीं ओर उठाते हुए साँस लें। उठे हुए दायें हाथ को देखें। सांस छोड़ते हुए उसे नीचे उतारें।
(आ) इसी तरह बायाँ हाथ उठा कर भी करें।

(इ) साँस लेते हुए दोनों हाथ छाती और सिर ऊपर उठावें। साँस छोड़ते हुए नीचे उतारें। छाती पर ध्यान दें |

6. दोनों हाथ कमर के पीछे रख कर, एक हाथ की कलाई को दूसरे हाथ से पकड़ें। साँस लेते हुए सिर और छाती को ऊपर उठावें। सांस छोड़ते हुए उन्हें नीचे उतारें। कमर पर ध्यान दें |

उपर्युक्त प्रत्येक क्रिया 3 से 5 बार करें।
गर्दन, छाती, कमर तथा रीढ़ की हड़ी पर मन को केन्द्रित करें।
लाभ –
स्वप्न स्खलन आदि दोष दूर होंगे। वीर्य की रक्षा होगी। स्त्रियों का गर्भाशय शुद्ध होगा। ऋतुस्राव संबंधी बीमारियाँ दूर होंगी। स्मरण शक्ति बढ़ेगी। विद्यार्थियों के लिए यह बड़ा उपयोगी है। स्पांडलाइटिस तथा गर्दन संबंधी अन्य दर्द कम होंगे। छाती, हृदय, फेफड़े, रीढ़ की हड़ी तथा कमर सुदृढ़ होंगे।
निषेध –
गर्भिणी स्त्रियाँ, हर्निया तथा अल्सर के रोगी यह आसन न करें।
4. निरालंबासन या मकरासन

मकर याने मगर है। यह आसन पानी के अंदर रहने वाले मगर के आकार में होता है| इसलिए यह मकरासन कहलाता है|
विधि –
भुजंगासन की स्थिति में रहें। दोनों हथेलियों पर ठोढ़ी रख कर दोनों कुहनियाँ मिला कर ज़मीन पर टिकावें। श्वास सामान्य रहे। 2 मिनट इस स्थिति में रहें, बाद सिर नीचे उतारें। गर्दन और रीढ़ की हड़ी पर ध्यान दें |
सूचना –
प्रात: उठने ही इसे अपने विस्तर में ही करें | कम्प्यूटर के आपरेटरों, हिसाब आदि लिखनेवालों, पुस्तकें पढ़नेवालों सिर झुका कर काम करने वालों को हर रोज़ रात के वक्त भोजन के पहले यह आसन अवश्य करना चाहिए।
लाभ –
स्पांडलाइटिस तथा गर्दन और कमर की व्याधियाँ दूर होंगी।
5. शलभासन
शलभ याने टिड़ी के आकार में यह आसन रहता है। अत: यह शलभासन कहलाता है।
विधि –
पेट के बल लेट कर दोनों हाथ, दोनों जाँघों के नीचे रखें। साँस लेते हुए दायाँ पैर ऊपर उठावें। थोडी देर तक कुंभक कर साँस छोड़ते हुए धीरेधीरे पैर को नीचे उतारे। ठोढ़ी ज़मीन से लगी रहे। आँखें मूंद कर रखें। घुटनों को न मोड़े।
इसी तरह बायें पैर से भी करें।

इसके बाद साँस लेते हुए दोनों पैर ऊपर उठावें। थोड़ी देर पैरों को उस तरह रख कर बाद सांस छोड़ते हुए दोनों पैर नीचे उतारें | यह एक रौड है| 2 या 3 रौड ऐसा करें। मन को उदर पर केन्द्रित करें।

लाभ –
कब्ज़ दूर होगा | बड़ी आँत और छोटी ऑत साफ होंगी। मधुमेह, साइटिका दर्द कम होंगे। पेंक्रियास ग्रंथि ठीक तरह काम करेगी |
निषेध –
अलसर, हर्निया तथा अधिक पेट दर्द के रोगी यह आसन न करें।
6. धनुरासन

इस आसन में शरीर धनुष के आकार में रहता है। अत: यह धनुरासन कहलाता है|
विधि –
पेट के बल लेटें। पैर सीधे पसारें। दोनों टाँगों को घुटनों से ऊपर की ओर मोड़े। दोनों हाथों से पैरों के टखने पकड़ें। साँस लेते हुए सिर, छाती, जाँघ, घुटने, पैर तथा हाथ ऊपर उठावें। थोड़ी देर के बाद साँस छोड़ते हुए यथास्थिति में आ जावें। घुटनों के बीच तथा पैरों के बीच एक फुट की दूरी रखें।
इस प्रकार तीन चार बार करने के बाद ऊपर की स्थिति में आगे पीछे तथा दाये बायें शक्ति के अनुसार, 5-10 बार झूमें | पेट पर ध्यान हो |
लाभ –
भुजंगासन एवं शलभासन दोनों का पूरक है धनुरासन। उन दोनों आसनों से जो लाभ होते हैं, वे धनुरासन से होते हैं। ऋतुस्त्राव, स्त्रियों की योनि, उनके गर्भाशय संबंधी दोष दूर होते हैं। ग्रंथियों को शक्ति मिलती है| कमर पतली होती है। पेट तथा पृष्ठ भाग की व्यर्थ व चरबी घट जाती है। स्थूल कायवाले व पहले पैर पकड़ नहीं सकेंगे। ऐसी स्थिति में पैरों से कपड़ा बाँधे, उस कपड़े को पकड़ कर आसन का अभ्यास करें।
निषेध –
कमजोर व्यक्ति, तीव्र कमर दर्द, रीढ़ की हड़ी का तीव्र दर्द, अल्सर, हर्निया, दिल की धड़कन, उच्च रक्त चापवाले तथा गर्भिणी स्त्रियाँ यह आसन न करें। कुछ ही दिनों पहले आपरेशन करानेवाले भी यह आसन न करें।
7. आकर्ण धनुरासन

नाभि आसन, भुजंगासन, शलभासन तथा धनुरासन इन चार आसनों का समन्वित रूप ही आकर्ण धनुरासन है।
विधि –
पेट के बल लेटें | दोनों पैर मिलावें | दोनों हाथ आगे पसारें | बायाँ पैर ऊपर उठावें। घुटना मोड़ कर दायें हाथ से बायें पैर के अंगुठे या टखने को पकड़े |
साँस लेते हुए हाथ, पैर, सिर तथा छाती को ऊपर उठावें। साँस छोडते नीचे उतारें | ऐसा 2-3 बार करें। बाद हाथ और पैर बदल कर भी यह आसन 2-3 बार करें | सारे शरीर पर ध्यान रखें |
लाभ –
ऊपर उल्लिखित चार आसनों से होनेवाले सभी लाभ इस आकर्ण धनुरासन से होते हैं।
8. विपरीत मेरुदंडासन

रीढ़ की हड़ी से संबंधित मेरुदंडासन की क्रिया पेट के बल लेट कर करते हैं, अत: यह विपरीत मेरुदंडासन कहलाता है|
विधि –
पेंट के बल लेटें | दोनों हाथ जोड़ कर सीधे आगे की और पसारें | घुटनों के पास पैर ऊपर उठावें। एड़ियाँ मिलावें। शरीर को इधर-उधर हिलावें। पैरो की छोटी ऊंगलियां जमीन को छूती रहे। सांस सामान्य रहे।
लाभ –
रीढ़ की हड़ी सुदृढ़ होगी। पेट की चरबी कम होगी।
9. विपरीत पवन-मुक्तासन

पीठ के बल लेट कर जिस तरह सुप्त पवन-मुक्तासन किया जाता है उसी तरह पेट के बल लेट कर यह आसन किया जाता है| इसीलिए यह विपरीत पवन-मुक्तासन कहलाता है|
विधि –
1 पेट के बल लेटें। दोनों हाथ कंधों के नीचे ज़मीन पर टिका दें| सांस लेते हुए सिर और छाती को ऊपर उठावें। दायाँ घुटना आगे की तरफ मोड़ें। सांस छोड़ते हुए, ठोढ़ी को दायें घुटने से लगावें । सांस लेते हुए सिर उठा कर, दायाँ पैर सीधा कर दें।
2. इसी प्रकार बायाँ पैर मोड़ कर भी करें।
3. इसके बाद दोनों घुटने मोड़ते हुए साँस छोड़ते हुए, माथे से दोनों घुटनों के बीच के भाग का स्पर्श करें। यह एक रौड है। ऐसे 2-3 रौड करें। पेट में ध्यान लगावें ।
लाभ –
सुप्त पवन-मुक्तासन से मिलनेवाले सभी लाभ इस आसन से मिलते हैं। कब्ज़, गास्ट्रिक ट्रबुल, एसिडिटी कम होते हैं। उदर हलका होता है।

पेट वेने बल लेट कर किये जानेवाले उपयुक्त सभी आसन शरीर वे सभी मुख्य अवयवों को लाभ पहुँचाते हैं। ये सब 15-20 मिनटों में किये जा सकते हैं। शक्ति एवं समय के अनुसार इन आसनों को सभी साधक करें और लाभ उठावें ।
भावार्थ :
स्पष्ट आवाज, तेजस्वी निर्मल आंखें, रोगों से मुक्ति, इंद्रियों पर विजय, अच्छा पाचन तंत्र, विशुद्ध नाडी संस्थान – ये सारे हठयोग के नियमित अभ्यास के लामू तथा योगी के लक्षण हैं |
– हठ योग प्रदिपीका
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